17.12.2020 मॊंजॖहोर (मार्ग/ मगर) ज़ूनॖ पछॖ (शुक्ल पक्ष) त्रय (देवादेव) (तृतीय) (देवादेव) ब्रसवार (वीरवार/बृहस्पतिवार/ गुरुवार), श्री सप्तर्षि सम्वत 5096, राश मकर (चलान) ऋतु हेमन्त (चलान)
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नमस्कार माहरा त्वहि सारिनी म्योन। त्वहि ऒरज़ुव दॊरकॊठ आय बत्तॖ। वुद्यूग करव मुकाम प्रावव
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महामऻरी नाश - मंत्र
जयन्ती मन्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वहा स्वधा नमोस्तुते
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लल वाक्
(पराग पुस्तक- 153)
ख्यथ गऺन्डिथ शमि ना मानस (दूर)
ब्रांथ यिमव त्रऻव तिमय गय खऺसिथ
शास्त्र बूज़िथ छुह यमॖ भयॖ क्रूर
सु ना पॊच़ तॖ दन्या लऺसित
अर्थात
वाख का अर्थ केवल ख़ाने से (फलाहार, कभी शाकाहार, केवल दूध पीना या व्रत रखकर एक समय खाना आदि) तथा पहनने (जैसे गेरवा वस्त्र, सादा या बहुमूल्य या रेशमी आदि पहनावा)से मनको शांत एवं नियंत्रण में नहीं किया जा सकता है। अपितु जिन्होंने सारी भ्रांतियां अर्थात संदेह एवं दुविधाएं त्याग दीं वे परमपद को पा गए। शास्त्र सुनने से काल भय अत्यन्त क्रूर है और वह किसी को क्षमा नहीं करता किंतु वह गुणयुक्त तथा पवित्र भी है।
भावार्थ:- विभिन्न प्रकार के पहनावे तथा आहार से मन नियंत्रण में नहीं आता क्योंकि इच्छा से ही मन वासनाओं में फंसाकर यमराज के दण्ड का भागीदार हो जाता है। अपितु मनुष्य पूर्ण समर्पण से ही ऊंचाई प्राप्त करता है। काल यद्यपि क्रूर तो है किंतु समर्पित मनुष्य को काल की परिधि से छुटकारा देता है। काल का अर्थ समय है और परमात्मा के सामने आत्मसमर्पित मनुष्य अपने आपको भूलकर अर्थात देहाभिमान से मुक्त होकर समय की परिधि से बाहर आता है। और स्वंय ही कालभय से मुक्त होता है।
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पांछ़ कऻशिर्य लफ़ॖज़ तॖ तिमन हुन्द अंग्रीज़स मंज़ तर्जमॖ तॖ त्रे मुहावरॖ याने कऻशिर्य दपित
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1. रऻछ (Security/Protection/Safety)
2. रऻछदर (Watchman/Security person/Protector)
3. रऻछ रोज़ुन (To watch and ward)
4. राज (Government/Kingdom/Administration)
5. राज करुन (To govern/To reign /To rule)
मुहावरॖ
1. मु: खल तॖ ख्वदा
अ: यॆलि नॖ कॆंह नॊन आसि
2. मु: खमिहे गुर तॖ खमान छु
गुनॖ
अ: यस नॖ पज़ि सु म्यंगॖ हावान
3. मु: खऺन्ड्य फुट हिसाब
अ: सु कारॖ बार यथ पूरॖ हिसाब
थावनॖ आसि नॖ आमुत
(पनॖन्य शुर्य ह्यॆछॖनऻव्यूख)
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पंचान्ग:- माल्युन यिथ कॊर माधव धर सऻबन स्यठाह लाड प्यार रॊपॖ भवानि। तऺम्य ओस बूज़मुत रॊपॖ भवऻनि सॗत्य किथॖ पऻठ्य ओस यिवान दुर्व्यवहार करनॖ तॖमिसॖन्ज़ि हशि हॖन्द्यि दऺस्य। तम्य हऻर नॖ ह्यमथ बऺल्कि कॊरुन स्वागत रॊपॖ भवानि वऻरिव त्रऻविथ तॖ हशि हुन्द ज़ुलॖमॖ निशि छुटकारॖ प्रऻविथ वापस माल्युन गर यिनस प्यठ। मगर रॊपॖ भवऻनि आव नॖ बॆहनस व्यस्तार मालिन्य गरस मंज़ ज़्यादॖ कालस। हालांकि माधव जियन दिच़ वुसथ रॊपॖ भवऻनि हॖन्दिस ज्ञान तीज़स मगर दपान तमि ज़ोन मुनऻसिब पनॖन्य साधना कुनि तन्हऻयी जायि मंज़ करनस। यि व्यच़ार मनस मंज़ थऺविथ दपान रॊपॖ भवानि त्रोव यि माल्युन गरॖ तॖ स्व वऻच़ वुसुन, मनिगाम, वासॖकूर,तॖ चेशमॖ साहिब। तॊत वऻतिथ बनोव रॊपॖ भवऻनि हॖन्दि रोज़नॖ बापथ तऺम्यसॖन्द्यव भख्तव अख आश्रम ति। सऻरी ज़ऻच़ हॖन्द्य लूख याने हॆन्द्य, मुसलमान ॴस्य ऱवफ द्यदि निश यिवान रोज़ान तॖ बोज़ान ॳम्यसॖन्द्य वाख ता प्रवचन। कथ छि जऻरी। दय कऺरिन्य असि सारिनी पनॖन्य यऻरी तॖ दूर गऺछ़िन यि महामऻरी
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कऻशुर ह्यॆछव कऻशुर परव
कऻशिर्य पऻठ्य पानॖवॖन्य कथ बाथ करव
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नऺविव तॖ फॊलिव
भूषण कौल "दीप"
(बूज़िव ॳज़्युक सबक़ म्यानि ज़्यॆवि ति)
(koshursabak.blogspot.com ति वुछिव)
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