नमस्ते शारदे देवी काशमीर पुरवासिनि त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे
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🙏🙏 नमस्कार माहरा
17.06.2022 हारॖ (आषाढा) गटॖ पछॖ (कृष्ण पक्ष) त्रय (तृतीया), देवादेव, शॊकुरवार (शुक्रवार/जुम्मा/भार्गववार), श्री सप्तर्षि सम्वत 5098, नक्षत्र उ.षा, राश मकर चलान ऋतु ग्रीष्म (चलान)..अज़ छि संकट च़ोरम (संकट निवारण चतुर्थी) ति, (ज़ूव खसि रऻच़ हॖन्ज़ि 10.52 बछि)...चूंकि पगाह छि च़ोरम रावान, पगहुक वॊहरवोद यी ॳज़्य
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त्वहि ऒरज़ुव दॊरकॊठ आय बत्तॖ। वुद्यूग करव मुकाम प्रावव
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महामऻरी नाश - मंत्र
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वहा स्वधा नमोस्तुते
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बरादरन प्रुछ़ तीज़मालि ज़ि मऻजी च़्यॆ मा छुय अज़ फ़ाकॖ। क्युथबा फ़ाकॖ। तीज़मालि प्रुछ़नस वापस। अज़ छॆना संकट च़ोरम मऻजी।बरादरन वॊनॖनस। हतबा वख अकि ॴसॖस थवान यि फ़ाक़ॖ मगर व्वंय नॖ। अछा अथ प्यठ करव ब्यॆयि कुनि दॊह कथ। च़ॖ बोज़नाव अन्तिम ज़ॖ पद गौरी स्तुति हॖन्द्य। आदबा तॖ बोज़ -
*नित्यः सत्यो निष्कल एको जगदीशः*
*साक्षी यस्याः सर्गविधौ सहरणे च* । |
*विश्वत्राण- क्रीडन शीलां शिवपत्नीं*,
*गौरीम् - अम्बाम्-अम्बु- रुहा -क्षीम्-अहम्-ईडे*।।
अर्थ : जिस महामाया के सृष्टि बनाते समय अथवा संहार करते समय सदा शिव जो नित्य, सत्य, सजातीय इत्यादि तीन भेदों से रहित है जो आप के बनाने के काम में केवल साक्षी रूप में रहते हैं, जगत की रक्षा करना जिन का एक खेल है उसी कमल जैसी नेत्रों वाली गौरी माता की मैं स्तुति करता हूँ।
*प्रातः (सायं) काले भावविशुद्धिं विदधानो*,
*भक्त्या नित्यं जल्पति गौरीदशकं यः*।
*वाचां सिद्धिं सम्पतिम् उच्चै: शिवभक्तिं*,
*तस्या - वश्यं पर्वत - पुत्री विदधाति* ।।
अर्थ: जो प्रातः काल शुद्ध हृदय से युक्त और संकल्प विकल्प रहित होकर भक्ति से नित्य इन दस गौरी माता के श्लोकों का उच्चारण करता है उस भक्त को सिद्धि, ऐश्वर्य, भगवान् शंकर की भक्ति पार्वती माता अवश्य देती है।
जय माता दी। गौरी स्तुति गऺयि अज़ पूरॖ। तीज़मालि वॊन बरादरस। यि छु व्वंय म्यान्यन ब्यॆन्यन तॖ बायन ताम ज़ि तिम किथॖ पऻठ्य करन मनन। कथ छि जऻरी
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कऻशुर ह्यॆछिव कऻशुर पऺरिव कऻशिर्य पऻठ्य पानॖवुन्य कथ बाथ कऺरिव
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नऺविव तॖ फॊलिव
भूषण कौल "दीप"
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