नमस्ते शारदे देवी काशमीर पुरवासिनि त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे
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🙏🙏 नमस्कार माहरा
15.06.2022 हारॖ (आषाढा) गटॖ पछॖ (कृष्ण पक्ष) ऒक्दॊह (प्रथमा/प्रतिपदा), देवादेव, ब्वदवार (बुधवार), श्री सप्तर्षि सम्वत 5098, नक्षत्र मूल, राश धनु (चलान) ऋतु ग्रीष्म (चलान)
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त्वहि ऒरज़ुव दॊरकॊठ आय बत्तॖ। वुद्यूग करव मुकाम प्रावव
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महामऻरी नाश - मंत्र
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वहा स्वधा नमोस्तुते
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बरादरन वॊन तीज़मालि ज़ि मऻजी मुबारक छुय। कम्युकबा। तीज़मालि प्रुछ़नस। नऺविस ऱयतस मंज़ क़दम त्रावनुक। आदबा च़्यॆति न्येरुन यि हारुन ऱयथ ह्रॊच़ तॖ फ्रूच़। बोज़नावी ॳज़ ब्रोहकुन गौरी स्तुति। आदबा-
*मूलाधारात्-उत्थित-वन्तीं विधिरन्ध्र,*
*सौरं-चान्द्रं धाम विहाय ज्वलितागीम।*
*स्थूलां सूक्ष्मां सूक्षमतरां ताम्-अभिवन्द्यां* *गौरीम्-अम्बाम्-अम्बु- रुहा-क्षीम्-अहम्-ईडे*।।
अर्थ : सूर्य लोक और चन्द्रमा लोक से गुजर कर मूलाधर से उठी हुई ब्रह्म रन्ध्र तक पहुंची हुई प्रकाश रूप, स्थूल तथा कारण शरीर में व्याप्त, प्रणाम के योग्य, कमलों जैसी नेत्रों वाली माता गौरी की मैं स्तुति करता हूँ।
*आदि-क्षान्ताम्-अक्षर-मूर्त्यां विलसन्तीं,*
*भूते भूते भूत कदम्बं प्रसवित्रीम्* । |
*शब्द ब्रह्मा-नन्द मयीं ताम्-अभिरामां,*
*गौरीम्-अम्बाम्-अम्बु- रुहा-क्षीम् अहम्-ईडे* ।।
अर्थ : 'अ' से लेकर 'क्ष' तक अक्षर रूप में विलास करने वाली, युग युग में प्राणियों को उत्पन्न करने वाली, शब्द ब्रह्म स्वरूप आनन्दमई उस सुन्दर मां का जिस के नेत्र कमल के समान हैं मैं स्तुति करता हूँ।
मज़दार। वाह आनन्द आव रातॖक्य पऻठ्य। मनॖ सान बोज़नॖ बापथ ऒरज़ुव। तीज़मालि वॊन बरादरस। कथ छि जऻरी
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कऻशुर ह्यॆछिव कऻशुर पऺरिव कऻशिर्य पऻठ्य पानॖवुन्य कथ बाथ कऺरिव
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नऺविव तॖ फॊलिव
भूषण कौल "दीप"
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