नमस्ते शारदे देवी काशमीर पुरवासिनि त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे
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🙏🙏 नमस्कार माहरा
16.06.2022 हार (आषाढा) गटॖ पछॖ (कृष्ण पक्ष) द्वय (द्वितिय), देवादेव, ब्रसवार (गरूवार/वीरवार/ब्रहस्पतवार), श्री सप्तर्षि सम्वत 5098, नक्षत्र पु.षा, राश मकर (शामन 05.55 बजि प्यठॖ), ऋतु ग्रीष्म (चलान)
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त्वहि ऒरज़ुव दॊरकॊठ आय बत्तॖ। वुद्यूग करव मुकाम प्रावव
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महामऻरी नाश - मंत्र
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वहा स्वधा नमोस्तुते
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बरादरन वॊन तीज़मालि मऻजी बोज़नावी अज़ गौरी स्तुति ब्रोंहकुन। बासान छुम च़्यै छय माजि हॖन्ज़ॖ लीलायि बोज़नि ख्वश करान। तीज़मालि प्रुछ़नस। मऻजी माजि दीवी हॖन्ज़ कृपा छि असि प्यठ तॖ अवॖ म्वखॗ छु च़्युंह च़्युंह नेरान। बरादरन द्युतनस जवाब। स्व कथ हाबा छि पऺज़। आदबा बोज़ ज़ॖ श्वलूक ब्रोंहकुन -
*यस्याः कुक्षौ लीनम् अखण्डं,जगत्-अण्डं,*
*भूयो भूयः प्रादुर् अभूत्-अक्षतमेव*।
*भर्त्रा सार्धं तां स्फटिकाद्रौ, विहरन्तीम्*, *गौरीम्-अम्बाम्-अम्बु- रुहा-क्षीम्-अहम्-ईडे*।।
अर्थ : जिस जगदम्बा की गोद में यह सब सृष्टि लय हो जाती है फिर बार बार किसी खण्डन के बिना फिर से उत्पन्न होती है प्रकाश के केन्द्र ब्रह्मरन्ध्र में सदाशिव के साथ विहार करती हुई अथवा बर्फ से ढक्के हुए सफेद हिमलाय पर्वत पर विहार करने वाली कमल जैसे नेत्रों वाली गौरी माता की मैं स्तुति करता हूँ।
*यस्याम्-एतत्प्रोतम्-अशेषं मणिमाला*,
*सूत्रे यत्-वत् क्वापि चरं चाप्यचरं च*।
*ताम्-अध्यात्म-ज्ञानपदव्या-गमनीयां*,
*गौरीम्-अम्बाम्-अम्बु- रुहा-क्षीम्-अहम्-ईडे।*।
अर्थ: जिस शक्ति में यह सारी चराचर सृष्टि ऐसे पिरोई हुई है।जैसे सूत्र में रत्न गुधे हुये होते हैं उसी शक्ति रूपी मां को जो आध्यात्म ज्ञान से जानी जाती है। जिस के नेत्र कमलों के समान हैं उसी मां की मैं स्तुति करता हूँ।
जय माता दी। वाह वाह। आनन्द आव। म्यॆ छु बासान व्वंय छि बस ब्यॆयि ज़ॖ श्वलूक। बरादरन यॊछ़ ज़ानुन। आहनबा तिम ज़ॖ परव पगाह। तीज़मालि द्युतनस जवाब। कथ छि जऻरी
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कऻशुर ह्यॆछिव कऻशुर पऺरिव कऻशिर्य पऻठ्य पानॖवुन्य कथ बाथ कऺरिव
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नऺविव तॖ फॊलिव
भूषण कौल "दीप"
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